जिस हाल में वो रखता हैं, मुस्कुराते हैं हर ख़ुशी हर गम में तेरे दर पे आते हैं खुदा की नेमत में क्या छुपा खुदा जाने हम सिर्फ शुकराने में अपना सर झुकाते हैं ..
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Showing posts from May, 2012
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सब कुछ ख़तम हो गया लेकिन उससे एक मुलाक़ात अभी बाकी है इश्क की मौत हुए अरसा बीत गया यारों जिंदा बचा एक जज़्बात अभी बाकी है उसने जब इज़हार-ए-मोहब्बत किया था तब उसकी हर बात एक सफ़ेद झूठ थी हमने कुछ तकाजा नहीं किया लेकिन उससे बहुत से सवालात अभी बाकी है छोड़ दिया किस्मत पर फैसलl किस्मत का हमने कभी कोई हक भी नहीं जताया फिर भी क्यूँ महरूम रह गए मालूम नहीं किस्मत पर ये ही इलज़ामात अभी बाकी है इज्ज़त से इजाज़त मांगी थी मोहब्बत की वो दोराहे पर खड़ा छोड़ गया तनहा मुझे वो बे-ताक़त और हम ग़ालिब हो गए, के उसमे दम न था और मेरी इतात अभी बाकी है किसको ज़रुरत है उसकी आशनाई की जिंदगी के कारवां में और साथी मिल गए कोई गुंजाइश भी नहीं उसके संग की चूँकि मेरे संग गुज़रे हुए चंद लम्हात अभी बाकी है जज्बा ए-इश्क में लुट गए बेसाख्ता जिसे रहबर समझा वो रहज़न मेरे अपने ही थे शिकवा नहीं तरस आता है लुटेरे पर क्यंकि लूटने को मेरे पास मेरी कायनात अभी बाकी है जज़्बात - emotion, महरूम-deprived, बे-ताक़त- weak, ग़ालिब- winner, इतात- loyalty, आशनाई - friendship, बेसाख्ता- suddenly, रहबर - guide
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मेरे नज्में और शेर लावारिस नहीं तुम्हारे हैं और तुम्हें इसको ठुकराना आसान नहीं कुछ तो बात है हम में, हमे वो भूल नहीं पाते के हमसे रिश्ते यूँ तोड़ पाना आसान नहीं बहुत गहरी है जो मेरे दिल पे लगी है वरना तेरे बहानों को समझ पाना आसान नहीं हद-ए-निगाह तक सदा एक ही चेहरा था और उस हद से परे मेरा देख पाना आसान नहीं तुमने मुहँ मोड़ लिया, तो खैर तुम जानो मेरा अपने अहसासों को झुठलाना आसान नहीं बरस दर बरस बिता कर भी महसूस किया बचपन की दोस्ती को भुलाना यूँ आसान नहीं मेरा कोई हक नहीं तेरी जीस्त पर वाकिफ हूँ मैं मगर मेरी जिंदगी से तेरा लौट पाना आसान नहीं प्यार और जंग में सब जायज़ है लेकिन हक की चीज़ गंवाना मेरे लिए आसान नहीं बहुत बड़ा जिगर चाहिए सरे-आम कबूलना सच अपने अहसासों को लफ़्ज़ों में बताना आसान नहीं
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सदियों इंतज़ार किया, सालों इंतज़ार करवाया फिर भी उसको मेरी मोहब्बत पर यकीन न आया अपने सब गुनाह नज़र अंदाज़ कर दिए उसने और मेरे एक कुसूर को, सौ सौ बार गिनाया हर रोज़ हाल -ए-दिल सुनाते रहे कई तरकीबों से हर रोज़ वो नज़रें चुराता रहा अपने रकीबों से हमने ज़माने भर में खुद को रुसवा कर डाला शायद उसे मेरा अंदाज़-ए-बयानी ही पसंद न आया बड़ा गुरुर था बड़ा सुरूर था, बड़ा ही वो बेमानी था रुखा था, बेपरवाह था और बड़ा ही बे- रूमानी था फिर भी मेरे नासमझ दिल ने क्यूँ उस बेदर्दी से दिल लगाया क्यूँ खुदा का सा रुतबा दिया क्यूँ सजदे में सर झुकाया ????
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संगदिल होना शायद मेरी मजबूरी है किसी के पास आना, किसी से दूरी है कितना आसान है इलज़ाम बेरुखी का देना मगर अपने गिरेबान में झांकना भी ज़रूरी है अक्सर लफ्ज़ दिल में दिमाग में छा जाते हैं तड़प तड़प के अहसासों के साथ बाहर आते हैं हम ये नहीं कहते हमको धोका हुआ, सच ये है मेरे पास दोस्तों से ज्यादा दुश्मनों की हुजूरी है जब आशनाई की उससे तो बेपनाह की जब भूलने को हुए तो हर पल वस्ल का भुला बैठे हम हाकिम नहीं, आलिम नहीं अहमक भी नहीं लेकिन शर्तिया मेरा जूनून -ए- इश्क फितूरी है ... sangdil - heartless, huzoori - presence, aashnaai - friendship, wasl- meeting with lover, haakim - judge, aalim - intelligent, ahmek - stupid, fitoori - madness
pain of an unborn girl
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this poem is dedicated to the TV program anchored by Aamir khan today.... it covered female foeticide ...Hats off to the producers of Satyamev Jayate... छोटी छोटी सी उँगलियाँ, छोटे छोटे से हाथ और उन हाथों में क्या किस्मत की लकीरें हैं क्या उम्र दराज़ होने की कोई गुंजाइश है या बाप को सिर्फ बेटे की फरमाइश है? एक सुई चुभती है तो दर्द होता है ना तो क्या वो मासूम चिल्लाई नहीं होगी बेचारी बेजुबान थी तो भी एक गूंगी गुहार नहीं लगाईं होगी?? लहू तो उसकी रगों में माँ का ही होगा और बाप से भी शक्ल मिलती होगी फिर जब जांच करवाने गए थे छोटी सी बच्ची की तकलीफ नज़र आई नहीं होगी? पेट में ही घर बनाया था और पेट ने बेघर कर दिया उस घर में क्यूँ सिर्फ बेटे की ख्वाइश है??? हर साल दस लाख बेटियों को मारा जाता है क्या ये क़त्ल नहीं गर है तो गुनाहगार कौन है किसको सज़ा मिले और कौन सज़ा दे इंसानियत पर इस जुर्म का ज़िम्मेदार कौन है क्या कसूर है उसका जिसने अभी दुनिया नहीं देखी उस मजलूम की हाय का हक़दार कौन है किसको इलज़ाम दे किसका गिरबान पकड़ें सभी सफेदपोश बनते हैं, बेदाग़ कौन है ?? कन्या प
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झूठे हैं वो लोग जो कहते हैं उन्हें इंतज़ार नहीं बज़्म में पीते हैं और कहते हैं बादा-ख्वार नहीं वो जो यादों के सहारे अपनी जिंदगी जीते हैं और उन्ही यादों को भुलाने को अक्सर पीते हैं क्यूँ शाम को पैमाने में सूरत-ए- यार ढूंढते हैं गर उन्हें उस एक सूरत से प्यार नहीं? हर बात का दोष लगाते हैं तकदीर पर हर बार मिलते हैं शर्तों की लकीर पर न रिश्ते तोड़ते हैं न रिश्तों को हवा देते हैं उसपर कहते हैं तुम मेरी कुर्बतों के हक़दार नहीं... गर माफ़ी मांगते हैं हम तो हमारा गुनाह पूछते हैं गर उनके कुफ्र गिनाते हैं तो वो वजह पूछते हैं काफिर हमें बना दिया खुद खुदा बन बैठे उसपर फरमान दिए के जीयो के मरने का तुम्हें इख्तियार नहीं ...
mast rah
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क्यूँ सोचता है किस बात पे रोता है जो होना है जिंदगी में वो ही होता है हर बात को दिल पे मत ले दीवाने बेचारा दिल खामखाह परेशान होता है सब्र मत कर के सब्र से हासिल हुआ जो दिल में है वो बोल दे यार मेरे मुक़द्दर से मत लड़ और ख्वाइश मत कर मिलता वो है जो किस्मत में होता है सुबह को सुबह मान और शाम का इंतज़ार कर जो तुझे चाहता है उसी से प्यार कर हर फैसला जिंदगी का जो मंज़ूर करता है बड़े मज़े से चद्दर तान कर सोता है
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dost do tarah ke hote hein.... ek jo zindgi bhar saath nibhaate hein doosre jo sirf chauthe aur terveen per aate hein... ek jo bure waqt mein haath thaamte hein doosre wo jo sirf achche samay mein apni yaad dilaate hein... ek dost wo bhi hota hai, jo aapko dard hua to rota hai kcuh wo bhi hote hein jo aapke zakhmon pe namak lagaate hein... bachpan ke kuch dost kai baar ta umr saath chalte hai bachpan ke hi kcuh dost umr ke saath badal jaate hein, kho jaate hein... kuch dost sabr sikhaate hein aur umeeden jagaate hein aur kuch dost rooth rooth kar apni baaten mawnaate hein... shikaayat fir bhi nahi kisi se, shikaayat ka koi faayada bhi nahi kyunki gulaab ke phool bhi kaante viraasat mein paate hein....
janamdin
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हज़ारों बरस की दुआएं मेरे दामन में नहीं न मेरी छोटी सी कलम में इतनी स्याही है हाँ, आप पर हमेशा दया रहे उस खुदा की बस यही एक दुआ मेरे दिल से आई है हर ख़ुशी आपको अपने दामन से बड़ी मिले किस्मत की देवी आपको राहों में खड़ी मिले मुस्कुराहटें इतनी रहें के समेटी न जा सकें रहमत उसकी उतनी जितनी खुदा ने बनायी है