zaraa soch lo


हर जगह दिल की सुनना ठीक नहीं
नए शहर में अहल की सुना करो
नए रिवाज़ हैं नए लोग हैं
ज़रा दूरियां बना कर चला करो
अनजान आस्तीनों में खंजर छुपे रहते हैं
ज़रा गिरेबान अपना बचा कर रहा करो
यहाँ हम-जुबां की तलाश बेकार है
ज़रा सोच के हाल-ए-दिल बयान करो ....

Popular posts from this blog