बहुत सुनसान है ये दयार, यहाँ क्यूँ कोई आता जाता नहीं
क्यूँ इस घर का किसी अपने से कोई नाता नहीं ...
बड़ी ही कोशिशों से किसी ने तो इस घर को बनाया होगा
जिसके दर- ओ-दीवार को कोई अपने लफ़्ज़ों से अब सजाता नहीं ...
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...