रिम झिम...
ये वृष्टि की टिपटिपाहट है ....
या दिल में मचलते अरमानों की...????
ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है..
या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की...
पता नहीं...
बस...
एक अहसास है..
जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं...
और रिमझिम पर बरसने लगते हैं
बस...
ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी....
उम्मीद है आपको पसंद आएगी...
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Thursday, 10 May, 2012
ab parwaah nahi zamaane ki, kisi ujde hue deewaane ki, jab dhuan hai to aag bhi hogi beshaq, lekin ab kisko padi hai aag bujhaane ki
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