सदियों इंतज़ार किया, सालों इंतज़ार करवाया
फिर भी उसको मेरी मोहब्बत पर यकीन न आया
अपने सब गुनाह नज़र अंदाज़ कर दिए उसने
और मेरे एक कुसूर को, सौ सौ बार गिनाया
हर रोज़ हाल -ए-दिल सुनाते रहे कई तरकीबों से
हर रोज़ वो नज़रें चुराता रहा अपने रकीबों से
हमने ज़माने भर में खुद को रुसवा कर डाला
शायद उसे मेरा अंदाज़-ए-बयानी ही पसंद न आया
बड़ा गुरुर था  बड़ा सुरूर था, बड़ा ही वो बेमानी था
रुखा था, बेपरवाह था  और बड़ा ही बे- रूमानी था
फिर भी मेरे नासमझ दिल ने क्यूँ उस बेदर्दी से दिल लगाया
क्यूँ खुदा का सा रुतबा दिया क्यूँ सजदे में सर झुकाया ????

Popular posts from this blog