झूठे हैं वो लोग जो कहते हैं उन्हें इंतज़ार नहीं
बज़्म में पीते हैं और कहते हैं बादा-ख्वार नहीं
वो जो यादों के सहारे अपनी जिंदगी जीते हैं
और उन्ही यादों को भुलाने को अक्सर पीते हैं
क्यूँ शाम को पैमाने में सूरत-ए- यार ढूंढते हैं
गर उन्हें उस एक सूरत से प्यार नहीं?
हर बात का दोष लगाते हैं तकदीर पर
हर बार मिलते हैं शर्तों की लकीर पर
न रिश्ते तोड़ते हैं न रिश्तों को हवा देते हैं
उसपर कहते हैं तुम मेरी कुर्बतों के हक़दार नहीं...
गर माफ़ी मांगते हैं हम तो हमारा गुनाह पूछते हैं
गर उनके कुफ्र गिनाते हैं तो वो वजह पूछते हैं
काफिर हमें बना दिया खुद खुदा बन बैठे
उसपर फरमान दिए के जीयो के मरने का तुम्हें इख्तियार नहीं ...