रिम झिम...
ये वृष्टि की टिपटिपाहट है ....
या दिल में मचलते अरमानों की...????
ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है..
या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की...
पता नहीं...
बस...
एक अहसास है..
जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं...
और रिमझिम पर बरसने लगते हैं
बस...
ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी....
उम्मीद है आपको पसंद आएगी...
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Monday, 25 April, 2011
वो जो दम भरते हैं मोहब्बत का प्यार उनके लिए जरिया है वक़्त बिताने का हम ही बे शऊर थे खुद को उसका खुदा समझ बैठे और खाया धोका उनकी को मोहब्बत ना अजमाने का
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