मेरे ज़ख्म भी मुझे अब दर्द नहीं देते
के वो मेरे अपनों की ही सौगात हैं
फर्क समझते ही नहीं हबीब और रकीब में
कुछ उलझे हुए अब मेरे जज़्बात हैं

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