जूनून-ए-इश्क बेहाल कर गया
रात का सुरूर दिन चढ़ते ही उतर गया
वो जिसे आँखों में बसा रखा था
टूटे ख्वाब सा गिरा और बिखर गया
ना अलविदा कहा, ना खुदा हफिज़ी की रस्म निभाई
गफलत में जिए और गफलत में उम्र बिताई
मोहब्बत की कसम शिद्दत से मोहब्बत निभाई
फिर भी उसका ख्यालों से मेरा ख्याल उतर गया
रात का सुरूर दिन चढ़ते ही उतर गया
वो जिसे आँखों में बसा रखा था
टूटे ख्वाब सा गिरा और बिखर गया
ना अलविदा कहा, ना खुदा हफिज़ी की रस्म निभाई
गफलत में जिए और गफलत में उम्र बिताई
मोहब्बत की कसम शिद्दत से मोहब्बत निभाई
फिर भी उसका ख्यालों से मेरा ख्याल उतर गया