जीने की वजह भी मिल जाती है, जीने के बहाने भी
बस, जीने के खवाब सजाते रहो
मिलेंगे अभी बहोत हमसफ़र राहों में आपको
बस तकदीर को अपनी आजमाते रहो
बस, जीने के खवाब सजाते रहो
मिलेंगे अभी बहोत हमसफ़र राहों में आपको
बस तकदीर को अपनी आजमाते रहो
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...