जूनून इतना के जूनून भी शरमा जाए
हौसला इतना के हर तकलीफ घबरा जाए
सताती है, पकाती है, कभी कभी रुलाती है
और दिन भर मुझे पागल बनाती है
मगर फिर भी मेरी छोटी सबसे अच्छी है
इतनी बड़ी हो गयी मगर अब भी बच्ची है
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...