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Showing posts from September, 2008

ऐसा भी हुआ कुछ....

ये आपकी नज़रे इनायत है जनाब हमारा जलवा नही जो जादू सर चढ़ के बोले उसका खाना खराब है *** इतनी तारीफ़ न कर के में इतरा का आइना तोड़ दूं कुछ झूठ बोला है , तो कुछ सच भी फरमाइये ये मेरा जमाल नही आपकी आँखों का धोका है हुजुर अब इस तरह मेरा गुरुर न बदाइए *** आपको आपकी खासियत का पता नही इस नियामत को हमने महसूस किया है जब कभी अपनों ने हाथ छोडा है मेरा आपने झुक कर मेरा हाथ थाम लिया है *** हिज्र का आलम कुछ ऐसे बिताया गया के तुझको ही सोचा किये तुझको ही ज़हन में बिठाया गया..... *** मेरे मौला मेरे अजीज़, मेरी दीवानगी का कोई हासिल नही जब जब जोगन बनी, तब तब उसका पता बिसर गया *** मेरी बातों पे यकीन हैं उन्हें इस बात का यकीन मुझे नहीं कई बार मुझसे वादा खिलाफी हुई, कई बार वादा तोड़ा गया..... *** जिसके दर से दामन भरने की तमन्ना थी मेरी उसका हाथ खैरात देने को उठा ही नही....

जमाल-ए-रु

मुद्दा ये नहीं ये कौन आबाद है मसला ये भी नहीं कौन बर्बाद हुआ मोहब्बत का सिला एक ये भी है न सबब का पता न सवाल का..... जादू से छा जाते हो तुम मेरी हस्ती पे नशा भी कुछ कुछ हो जाता है तेरी दोस्ती के सदके मेरे हमसफ़र मेरा मुझपे यकीं सा हो जाता है ये मेरा कुसूर नही के कदम आपके डगमगाने लगे एक आपकी नज़र नशीली है, एक आपका ....

मुझे आजाद कर दो...

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न इजहार तू कर न इकरार तू कर मैं एक आजाद पखेरू हूँ मुझे आजाद तू कर मेरी खुशबू, तेरी नहीं मेरी आरजू, तेरी नहीं मैं एक हवा का झोंका हूँ मैं बहूँ, आगाज़ तू कर

बिखरे...बिखरे से...

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ऐसा तो नहीं है के हम में वफ़ा नहीं, ऐसा भी नहीं के तुम बेवफा हो कुछ वक़्त का साथ न मिला, कुछ मौके ने साथ न दिया आज तुम्हारे पैगाम का कोई इंतज़ार करता है, ज़रा पुकार कर देखो,शायाद जवाब आ जाए निगाहों की हसरतें बयान कर देते तो क्या बात होती, बैचानियाँ कुछ तुम में नज़र आई ...बैचानियाँ कुछ उसमे नज़र आई दिल की बैचैनी का सबब भी तुम हो करार भी तुम हो के मेरा मर्ज़ भी तुम हो और चारागर भी तुम हो निकल कर अपनी हदों से आगे, उनकी हदों को पार करना है के अब मस्सर्रत का कारवां उसके घर जाकर रुकेगा ....

ज़रा सोचो...

किन किनारों की बात करते हैं जनाब जहाँ लहरें दम तोड़ती हैं जहाँ किश्तियाँ सागर तोलती हैं जहाँ खारे पानी का एक सैलाब आता है जहाँ हर पेड़ मुरझा जाता है दर्द की शिद्दत किनारा नहीं बताता है दर्द हमेशा समंदर अपने दिल में छुपाता है बात करो जब चोट की तो, सफीने से पूछो जिसको किनारा छोड़ देता है और समंदर सँभाल नहीं पाता है

दुआ के साथ

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इस दिल न पूछ ए दोस्त इसमें सिर्फ प्यार है अपने दोस्तो के लिए दुआएं बेशुमार हैं इस प्यार की हदें कोई रिश्ते से नहीं बंधी इस प्यार में कोई उमीदें भी नहीं इस प्यार का जज्बा पाक है के इसमें एक अटूट ऐतबार है अपने दोस्तो के लिए दुआएं बेशुमार हैं

तेरी याद आई

फिर रात की तनहाई फिर तेरी जुदाई फिर रुका हुआ सा वक़्त फिर बारिश ने आग लगाईं फिर एक उदासी चांद की सारे आसमान पे छाई अब ऐसे मौसम में फिर बेदर्दी तेरी याद आई

पहलू में

क्यों मुझसे वो पता पूछते हैं मेरा जब उनके पहलू में वक़्त बिताया जाता है खुद को खुद की खबर तक नहीं होती जब उनका चेहरा सामने आता है

मेरी चौखट

मेरी चौखट पे क्या मरेंगे हुजुर मेरे दयार पे की फकीर सर झुकाते हैं यहाँ मरने वाले भी बाराहाँ जी जी जाते हैं आपकी बहारें ओदकर में ज़रुर आपके ठिकाने आउंगी देखें आप क्या पेश करते हैं देखें आप क्या करम फरमाते हैं न यारी है अपनी, न दिलदारी है उस पे क्यों आप हम तलाशा करते हैं क्यों इतने पैगाम भेजते हर रोज़ क्यों हर वक़्त हमे यूँ सताते हैं ....

कोशिश

कामयाबी भी कोशिशों के कदम चूमती है हर चीज़ जहाँ में कोशिशों को ढूँढती है रवानियाँ होती है ख़्वाबों में अक्सर ख्वाइशें असलियतें मगर सिर्फ मेहनत का पता पूछती है प्यार मौका परास्त नहीं प्यार मौका देता है जहाँ में प्यार देने वाला प्यार ही लेता है प्यार में कामयाबी तो सबको नसीब नहीं होती प्यार का जज्बा मगर कामयाबी से भी कीमती है...

मेरी तमन्ना

मेरी तमन्ना न कर ए दीवाने मेरी हस्ती ही क्या है इस ज़माने में यहाँ हर मोड़ पे हुस्न पड़ा हुआ है हर कोना इश्क से सजा हुआ है पहनके रिश्तों के तागे ओद ले रास्तों के साए के यहाँ हर रहगुज़र पे कोई अपना ही खडा हुआ है

ख्वाब

जो दिल में रहे उसे ढूंढें क्यूँकर जिसका ठिकाना ही मेरा मकान है वो बात दूसरी है के उनका यहाँ से गुज़रना, बेशक मेरी जिंदगी पे एक अहसान है कांच के ख़्वाबों को आँखों में ही रहने दो कहीं गिर गए तो टूट जायेगे भला ख्वाब टूट गए तो बताईयें क्या आप बे-ख्वाब जी पायेंगे???? क्यों मुझसे वो पता पूछते हैं मेरा जब उनके पहलू में वक़्त बिताया जाता है खुद को खुद की खबर तक नहीं होती जब उनका चेहरा सामने आता है याद का कोई कसूर नहीं, के जब तब आ जाती है, ये उसके दीदार की ख्वाइश है जो हर वक़्त सताती है, रूबरू होना तो मुमकिन नहीं मगर, एक सूरत है जो ज़हन में अक्सर छा जाती है.... अब भी तेरे इंतज़ार में कोई है, अभी शायद तुझको उसका ख्याल आया है ज़रा दरवाजा खोल के देख, ठंडी हवा झोंका उसका पैगाम लाया है हर रोज़ एक हिकायत लिखते हैं दर्द-ए-जुदाई की हर रोज़ फिर उसको मिटा देते हें, तेरे तसव्वुर की तपिश में जलते हैं और हर रोज़ एक नया गम गले लगा लेते हैं

हिजाब में

हमारी पलकें झुक कर भी बातें करती हैं हौले हौले दिल की बातें यूँ ही कहने दें पर्दा-नशीं रहना हमारी फितरत है हिजाब में हमे यूँ ही रहने दें खुल के मिलना रुसवाई करता है दुनिया की आँखों में हर लम्हा खटकता है मुस्कुराने से हमारे, लोगों का दिल धड़कता है हमे बस अपनी खामोशी में यूँ ही रहने दें हौले हौले दिल की बातें यूँ ही कहने दें

उसको हमारी याद तक नहीं आती...

शिकायत करते हैं वो अहवाल न देने की, मगर अब उनकी चिट्ठी तक नहीं आती, कभी गुफ्तगू हो जाती थी, लेकिन अब तो उनसे आवाज़ तक सुनाई नही जाती, न कोई पैगाम, न रुक्का, न कई दिनों से कोई खैरियत की खबर आजकल उनसे हमारी बात करने की फरमाइश भी पूरी करी नही जाती पहले कभी एक खुशबू उनकी हवाएँ ले के आती थी अब हमारे देश की बदली वहाँ के आस्मा पे नही छाती वक़्त वक़्त की बात है, वक़्त से कोई शिकायत की नही जाती जिसके लिए बैचैन हो उठते हैं आज भी, उसको हमारी याद तक नहीं आती

ख्वाब बुलाते रहे..

यहाँ हर शख्स कुछ ढूँढता है कुछ पाने की कोशिश में अब किसको क्या मिले ये या किस्मत जाने या खुदा… सुबह की आगाज़ हो गयी तेरे सलाम से देखें अब अंजाम क्या होता है.... रौशनी बिखर जाती है दोस्तों का सलाम जब आता है ज़र्रा ज़र्रा निह्कत भर जाती है हर गोश मुस्काने लगता है जार जार मेरा दिल भी तस्लीम करता है बार बार कल फिर तुम्हें मेरे ख्वाब बुलाते रहे तुमको मेहमान बनाने का इरादा था न तुम आये न कोई पैगाम आया मगर लुत्फ़ उस इंतज़ार में वसल से ज्यादा था... आपकी खामोशियाँ बहुत आवाज़ करती हैं कितने सुनसान उनसे आबाद होंगे जो बे-जुबां होकर आप इतना कह जाते हैं बयानी पे आपकी और कितने बर्बाद होंगे हम जले हुए खुद हैं उनको क्या जलायेंगे दिल की आग को आतिश से ही बुझाएंगे मर कर किसने देखा है जनाब हम तो जीते जी ही शमा बन जायेंगे

यादें

तुझको भूलना मेरे बस में नही लेकिन तुझे याद कर के भी जीया नहीं जाता तेरी यादों के गम में पी लेते हैं के शादमानी में अब पीया नहीं जाता अपनी जिद की बात छोड़ दे ए सनम मेरे यहाँ ज़िन्दगी को शर्तों पे जीया नहीं जाता अब ये सवाल पूछा तो टूट जायेगा दिल मेरा के हर बार चाक दामन सीया नहीं जाता

गुस्से में..

तुम करो गलती तो वो मज़ाक बन गयी हम करें मज़ाक तो वो गुनाह में शामिल हो गया हमको दी सज़ा और सज़ा हमने कबूल की आपसे की शिकायत तो दिल आपका घायल हो गया

किस तरह बुलाएं उन्हें..

किस तरह अब उनको बुलाएं, कोई तरकीब नज़र नहीं आती उनकी तस्वीर सा अब तो पलकें भी उठाई नहीं जाती सताने का गर शौक था उन्हें, तो हम भी लुत्फ़ उठाते थे बेहिसाब उन गुस्ताखियों को अब तरसते हैं क्यूंकि अब तक वो शरारतें भुलाई नहीं जाती उसको हर पल जूनून था मेरी मोहब्बत का अपना हाल भी मानिंदे आशिक था क्या करें बेबस हैं कि इश्क की फितनागिरी यूँ भी उतारी नहीं जाती

बर्दास्त करना सिखाती हैं

हमारी हदें दरिया की लहरें हैं जो बाँध बनने पे ही काबू आती हैं उनकी हदें सागर सी गहरी हैं जो साहिल तक आकर भी लौट जाती हैं हमारी हसरतें एक जिद बन कर अक्सर उन्हें सताती हैं उनकी ख्वाइशें उनके लबों पे आकर खामोश हो जाती हैं हमारी मोहब्बतें एक तपिश बन कर हमे दिन रात जलाती हैं उनकी चाहतें चांदनी बनकर नूर हमपर बरसाती हैं हमे हमारी दूरियां हर वक़्त हर लम्हा तड़पाती हैं मगर उनकी मजबूरियां उनको ये दूरियां बर्दाश्त करना सिखाती हैं...

हमने उसको हर वक्त महसूस किया हैं

ना तलाशते थे ख़ुशी, न गमों का हिसाब रखते हैं हमने जिंदगी की हर शक्ल को खुल के जीया है यहाँ आब-ओ-हयात और ज़हर में ज्यादा फर्क नहीं हमने दोनों को बड़े शौक से पीया है कभी जाम में नशा नहीं होता नशे का अहसास हमने खाली प्याले में भी किया है उसके शबाब का कोई सानी नहीं इस जहाँ में जिसकी अदाओं को हमने आँखों से पीया है एक लम्हा भी मेरे पास नहीं, एक लम्हा भी दूर नहीं न मेरा है, न पराया, न भूला, न याद आया फिर भी वो एक शख्स हमेशा मेरे साथ जीया है....

लाश की मंडी लगती है....

चौराहे पे ये दुनिया कितनी खूबसूरत दिखती है मगर यहाँ इंसानियत हर मोड़ पे बिकती है ए दोस्त, न आंसू बहा किसी भी जनाज़े पे के हर चौराहे पे लाश की मण्डी लगती है कहीं खून खून को नही पहचानता कहीं बचपन की कहानी जवानी में ढलती है ए दोस्त इस ज़मीन पे ऐसा भी होता है औरत की आबरू सरे-आम लुटती है... सिर्फ मतलब की इस दुनिया में हर चीज़ की कीमत होती है हर शय का सौदा होता है हर रूह पे बोली लगती है

शिकायतें

जब तेरे पास वक़्त ज्यादा था ओर मुझपे वक़्त की महरबानियाँ न होती थीं तब मेरे घर के दरीचे में अक्सर उसकी परछाइयों की निशानियाँ होती थीं वो हर लम्हा मुझपे निसार करता था उसका हर ख्याल मुझसे ही वाबस्ता था जब मेरे पास वक़्त कुछ कम होता था तब उसको मेरे न मिलने पे परेशानियाँ होती थीं सिर्फ मेरी बेबसी थी और उसकी बेशुमार शिकायतें उसकी नाराज़गी थी ओर बेपनाह मोहब्बतें लेकिन मेरे पास सिर्फ उसको देने को मेरी मजबूरियों की कहानियां होती थीं आज मेरे पास वक़्त है, उसके पास नहीं हर लम्हा मेरा उसके तस्सव्वुर में गुज़रता है अब मेरे यहाँ दौर-ए-खिजां है और उस तरफ बहार है जहाँ कभी वीरानियां होती थीं

फिर पहचान होगी.....

उनसे मिलने का न कोई जरिया है न तरकीब और न उम्मीद कोई, मगर इस बात पे ऐतबार है, के ज़िन्दगी कभी तो मेहरबान होगी कभी तो फिर मुलाक़ात होगी, कभी तो फिर पहचान होगी....

फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं....

खुली आँखों में भी उसका ख्वाब बसता है उसकी हसरत में ये दिल तरसता है उसको मेहमान करने की ख्वाइश मन में है जिसका रास्ता मेरे दिल से होकर गुज़रता है कई मर्तबा एक शोर उठता है सीने में जिसकी चुप्पी ज़माने को सुनाई देती है मेरी आँखों से सबको इल्म हो गया है आजकल हमारी चर्चा ज़माना करता है ये ज़िन्दगी आखारिश मुक्कम्मल होगी फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं फिर एक दिन लौटना है उसे के अब यहाँ वक़्त भी उसका इंतज़ार करता है