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Showing posts from June, 2012
kab tak raah dekhen uski ya allah k aane ki koi soorat nahi nazar aati har roz din bhi khaali khali guzarta hai, har roz raat bhi khali khaali laut jaati...
sach, humne sabr bhi kiya aur intezaar bhi humne dillagi bhi ki, aur behad pyaar bhi, lekin sirf fatwa jaari karna hi aata tha use k wo n samjha mera izhaar bhi, mera iqraar bhi..
कोई वादा नहीं कोई करार भी न था दिल को उसके आने का इंतज़ार भी न था हम तो उस मरासिम को याद करते रहे जिस मरासिम पर मेरा कभी इख्तेयार न था
ek ummeed hai, ek intezaar hai, ek bharosa hai, ek aitbaar hai, us beparwaah ka jisne kaha tha ke use bhi mujhse toot k pyaar hai
कभी अपनी बाजुओं में मेरी कमी खली है? कभी मेरी चाहत तेरे दिल में पली है? कभी ऐसा लगा के सर मेरा तेरे काँधे पर हो, कभी ख्वाइश तेरी मेरे जिस्म में ढली है? कभी चुपके से यादों ने घेरा है, कभी लगा मुझपे हक सिर्फ तेरा है,  कभी रातों को जागते हुए सोचा है, तेरे प्यार की आग में कोई जली है? कभी तन्हाई में आंसू बहे हैं, कभी मेरे ख्याल तेरे ख्यालों  में रहे हैं, कभी हाथ बड़ाया है नींद में मुझे आगोश में लेने को, और सांस तेरी तेज़ तेज़ चली है? कभी महफ़िल में दिल उदास हुआ है कभी लगा शायद मैंने तुम्हें छुआ है कभी रास्तों पर चलते चलते भटक कर  तुम वहां पहुंचे हो जहाँ मेरी गली है??? 
कोई वादा नहीं कोई करार भी न था दिल को उसके आने का इंतज़ार भी न था हम तो उस मरासिम को याद करते रहे जिस मरासिम पर मेरा कभी इख्तेयार न था 
अब तो पैगाम भी दीवारों पर लिख दिए जाते हैं कभी शायराना लिबास में कभी नज़्म के लिहाज़ से ज़रुरत ही नहीं पड़ती रिश्तों में गर्मियां ढूँढने की हर सवाल का जवाब मिलता है यहाँ एतराज़ से  ... मिसाल दें भी तो क्या हासिल, के हर गोश में यहाँ बैठा है कोई अपना ही अपनी ही आज़ से शक अपनी नीयत पर करना बहुत मुश्किल है लोग शक पैदा कर देते हैं ख़ूबसूरत अंदाज़ से हमने घर के दर-ओ-दरवाज़े खोल रखे हैं कब से देखे कौन दिलाता है निजात मेरे गम-ए-फ़राज़ से शिकायतें हमे भी बेशुमार हैं उस ना-आशना से लेकिन अब क्या उम्मीद रखें उस ना-शिनास से लब खामोश रहते हैं और आँखें झुकी झुकी सी तकाज़ा भी ना कर पाए किसी भी जवाज़ से तेरे जानिब मेरी तवज्जो एक शौक है पुराना वरना छोड़ दिया तुझे देखना गलत नज़र अंदाज़ से ... gosh - corner, aaz - lust, desire, faraaz - extreme, na-aashna - stranger, na-shinaas - ignorant, jawaaz - excuse, justification
बहुत रात बीतने की बाद भी हर रोज़ किसी के क़दमों की आह्ट सुना देती है नींद आ आ कर अटक जाती है आँखों में और पलकें उसके ख़्वाबों पर गिरा देती है हर गोश ज़हन का उसका तस्सव्वुर करता है हर पोर नयनों का उसके अश्कों को भरता है आगोश में जिस्म होता नहीं मगर फिर भी बाज़ुएँ उसके पहलु में पकड़ कर लिटा देती है...
एक सन्नाटा सा छा जाता है बज़्म में उसकी चुप्पी अक्सर बहुत बोलती है  हर तरफ खामोशी का दौर हो जब उसकी निगाहें मेरा हर लफ्ज़ तोलती है... 
sirf aankhon mein basne se unhe taabeer nahi milti, badaa hausla chaahiye unko haqiqat banaane ke liye, ek soch kaafi nahi aasmaano ki bulandi choone ko, khwaabon ko bhi pankh chaahiye unko paane ke liye
नफरतों को छोड़ कर तुम अब जीना सीख लो नाराजगी में जीकर भला क्या लुत्फ़ आएगा सारे गिले-शिकवे एक दिन तुम तक रह जायेंगे जब रकीब तेरा जहां छोड़ कर वहाँ चला जाएगा...
har hassen shai khwaabon mein hi milti hai.. kyunki zindgi ki sachchai bahut be-swaad hoti hai
क्यूँ बेवजह खुश होता है क्यूँ जार जार रोता है ये जीवन के रंग हैं क्यूँ रंगों में यूँ खोता है जो तेरा नहीं वो किसका है इस बात में क्या रखा है सपने अक्सर टूट जाते हैं क्यूँ सपने तू पिरोता है जी नफरतों को तज के तो जीना आसान होगा ख़ुशी को गले लगाने से दिल हलका होता है .. सब दोस्त हैं यहाँ तेरे कोई भी तेरा रकीब नहीं जा अपनी जिंदगी को ढूढ़ ला क्यूँ गम में दामन भिगोता है कोई आज है वो कल न होगा जिंदगी का कोई भरोसा नहीं जब तक है मौज कर यार क्यूँ कल के लिए आज खोता है
जिंदगी में मुहब्बत को हमेशा दो पैमानों में नापा जाता है एक जब आलम बेखुदी का होता है एक जब बेखुदी के बाद होश आता है जिंदगी बे-जुबां नहीं मगर मुहब्बत में बयानी की क्या बातें एक जब जुबां खामोश होती है एक जब अहसास लफ़्ज़ों में समाता है जीने के लिए वक़्त नहीं मगर नामुराद मुहब्बत के आलम में कभी दिल सिर्फ यार को ढूंढता है कभी हर घड़ी उसका ख़याल आता है...
khudaai us khuda ki kisi ko badal na sake... kismet mein the magar saath na chal sake.
दिन सुबह से ही थका थका आता है और टूट कर फिर रोज़ गुज़र जाता है कैसी जिंदगी है दोस्तों के आजकल वो सूरज भी कम रौशनी दिखता है..... बस एक भीड़ सी दिखती है हरसूं और हर आदमी अपने में मसरूफ है हज़ारों चेहरे किसी अपने के लगते हैं मगर हर शख्स पराया नज़र आता है .... सुबह सोचतें हैं के शाम अच्छी होगी शाम होते ही सुबह का इंतज़ार करते हैं दिन भर रात का ख्याल चैन नहीं देता और रात को दिन का डर सताता है ... अचानक सब बदला सा लगने लगा है और ये दिल उदास सा हो जाता है कभी दोस्त दुश्मन दिखाई देते हैं कभी दुश्मनों में दोस्त नज़र आता है ... क्या बीतती हुई उम्र का ये खौफ है या आते हुए वक़्त की दस्तक सुनती हूँ क्या ये मेरा वहम है या ऐसा ही होता है क्या सबकी जिंदगी में ये दौर आता है?
किस बात का गुरुर, किस बात का गुमान आखिर तेरा इस ज़मीन पर वजूद क्या है? क्या तुझे इल्म है कोई कैसे जी रहा है किसी की जीस्त का आखिर हुदूद क्या है? तुझे तेरे बेगानेपन की कसम देते हैं एक बार सोचकर देख बिछड़े हबीब मेरे किस किस के गुनाहों की सज़ा दी मुझे तेरी बेवजह नाराजगी का शहूद क्या है? wajood - existence, ilm - knowledge, jeesat - life, hudood - boundary, habeeb - friend, shahood - manifestation
bade tangdil hote hein jinhe ikhteyaar diya jaata hai phir har mod par us sangdil ka intezaar kiya jaata hai tumhari talaash shaayad mukammil nahi hogi kyunki wo beparwaah hote hein jinhe dil se pyaar kiya jaata hai
un mukaamon par ab barf girti hai, jahan kabhi teri aane se aatish bhadak jaati thi, sahra ban kar ujad gaye wo chaman jahan se kabhi baad-e-naseem aati thi
dard de kar koi yun chalaa jaata hai, jaise dua de di ho umr daraazi ki...
वोह गालिबन खुद को खुदा समझ कर इतराते रहे हम आदतन उनके सजदे में सर झुकाते रहे संग का सीना रखने वाले संग न रहे सके और हम खुद को काफिर से मुसलमां बनाते रहे ... ghaaliban - often, sang - marble, kaafir - non- believer, muslamaan - one who worships
bahaaron ne chaman loot lene ka dastoor banaaya hai, tabhi to khwaaron ko phoolon ke beech ugaaya hai...
intezaar nazar ko nahin, is dil ko hota hai, nazar sirf aansu bahaati hai, dil jab bhi rota hai..
कोई ख्वाइश नहीं, अब कोई शिकायत भी नहीं हम उनसे अब वो जुनूनी मोहब्बत भी नहीं मेरा हर ख़याल उसके ख्याल से गुज़रता था कभी मेरे ज़हन में जिसकी अब अहमियत भी नहीं चुरा कर नीदें ख्वाब देखा करते थे रात भर मेरी आँखों को उन सपनों की अब आदत भी नहीं हदों के पार जाना मेरी फितरत थी कभी शायद मेरी तम्मनाओं में अब उसकी हसरत भी नहीं खुदा कहने से कोई खुदा बन नहीं जाता यहाँ के मेरे दिल में उसके लिए अब इबादत भी नहीं ए काश वो मेरे इन लफ़्ज़ों को समझ ले गौर से मुझे उसकी आरजू नहीं, मुझे उसकी ज़रुरत भी नहीं...
कभी कभी मेरे लफ्ज़ लोगों को चुभ जाते हैं किसी को अपने दिए दर्द का अहसास कराते हैं बोलते नहीं सिर्फ सफ़ेद कागज़ पर बिछ कर स्याही की कालिख में मेरी रातों का रंग छुपाते हैं.
कसम भी खाई हैं, वादा भी किया हैं तेरे साथ जीने के इरादा भी किया हैं जिससे जिंदगी का मुकाम हासिल हुआ है उससे इक्तेज़ा हक से ज्यादा ही किया है ... दिल का हाल कांच पर लिख कर दे दिया अब चाहे वो संभाले या फानूस बना ले वो समझ सके तो खुदा खैर करे गरचे इकरार हमने कुछ सादा ही किया है ... इक्तेज़ा - demand, फानूस - lamp of glass, गरचे - even though, सादा - plain, simple
इतनी मुशक्कत के चाँद  पर नक़्शे कदम छोड़  सकता  है  गर  चाहे तो मेहनत से तकदीर का मुहं मोड़ सकता है  कौन कहता है आसमान की हदों के पार जाना मुमकिन नहीं  इंसान कोशिशों से आसमान को भी चद्दर सा ओड़ सकता  है  
हर ख़याल को संजोना और करीने से सजाना  तन्हाई में फिर हर पल बार बार बिताना  किसी की फितरत में गुरेज़ी भरी है  किसी को पड़ता है हर रोज़ समझाना  एक ही ज़मीन पर कितनी जुदा शक्सियतें  एक मेरे बिना एक सांस लेने से भी डरता है  और एक अपनी साँसों का तकाज़ा मुझ से करता है  एक कहानी बन गया और एक ने लिखा अफसाना  इंतज़ार का किस्मत ने हसीं सिला दिया  वक़्त ने फिर जिंदगी के रास्तों पर मिला दिया  कभी दोस्त समझा था वो शख्स जान बन गया  और जान का दुश्मन बन गया एक दोस्त पुराना 
देने को तो लोग खुदाई लुटा देते हैं एक लम्हा मसर्रत को जान गवां देते हैं फिर हमने कौन सा उनका जहाँ माँगा था बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था ... वो बज़्म-ओ - महफ़िलें सजाते हैं दुनिया भर के आशिकों को बुलाते हैं फिर हमने कौन सा उनका आशियाँ माँगा था बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था .... वो खुद खुलेआम ख़त भिजवाते हैं उसपर ज़माने भर से ताकीदें करवाते हैं फिर हमने कौन सा उनका बयान माँगा था बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था .... कसमें खाते हैं और वादे भूल जाते हैं दैरो-हरम के किस्से अक्सर सुनाते हैं फिर हमने कौन सा उनका ईमान माँगा था बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था.... मसर्रत - happiness, बज़्म-ओ - महफ़िलें- parties, आशियाँ - house, ताकीदें -orders, बयान - explanation, दैरो-हरम - places of worship, ईमान - Conscience
हर इंतज़ार की एक मियाद होती है हर रिश्ता वक़्त के साथ बदलता है कौन उम्र भर साथ देता है किसी का कौन पग पग आपके साथ चलता है दामन थामना कोई बड़ी बात नहीं दामन थाम कर रखना दिलदारी है रंजिश दिल में कोई रखे तो रखा करे मेरा नसीब अब उसकी हथेली में पलता है मुझे गुरुर है अपने इन्तिखाब पर एक ऐसा शख्स जो शातिर नहीं वो जो सिर्फ मेरे लिए ही जीता है वो जो सिर्फ मेरे रंग में ढलता है ....
दिल के ज़ख्म उसको बार बार दिखाते रहे  यूँ ही जुर्रत करते रहे और करके घबराते रहे उसने हमेशा की तरह वादा किया मिलने का  हमेशा की तरह हम उसकी बातों में आते रहे ... रिस रिस कर जो एक नासूर सा बन गया था  मेरे वो घाव  मेरे अपने हाथ ही   सहलाते रहे    मुझमें गैरत है गुरुर नहीं, ये बता न सके  बाकी दुनिया ज़माने की बातें उसको बताते रहे... इंतज़ार का न सबब था न सवाल था न मलाल था  फिर भी लुत्फ़-ए-इंतज़ार  बेसबब  उठाते रहे  एक दौर था सदियों का जो एक दिन में बीत गया और हम बीते हुए दौर का गुंजल सुलझाते रहे... क्या गिला करें जब उसको परवाह  ही नहीं दिल को ये बात हम अक्सर समझाते रहे  एक अरसा गुजरने के बाद ये अहसास हुआ उससे  अब आशनाई न थी जिसको आशना बनाते रहे..   फिर एक खुदा बदला खुदा की रहमत बदली  और हम उसकी रहमतों के आगे सर झुकाते रहे  अब  मिला जो एक रहनुमा नसीब बनकर  आज  तो   दिन भर हम अपनी तकदीर पर इतराते रहे... 
क्या है तुम में, क्यूँ इतना सताते हो क्यूँ चैन नहीं पड़ता, क्यूँ इतना याद आते हो? क्या कमी है मेरे प्यार में इतना ही बता दो किस लिए मेरा दिल बार बार तोड़ जाते हो... कुछ तो रही होगी पहचान हमारी पिछले जन्मों की कुछ तो सबब होगा मेरी इस दीवानगी का  कुछ तो है जो किसी को नज़र नहीं आता  कुछ तो है जो तुम इतना दिल लुभाते हो.... मुझे जीना तुम बिन एक सज़ा लगने लगा  है तुमसे दूर मेरा वजूद क़ज़ा सा लगने लगा है हर वक़्त एक डर रहता है तुमसे बिछड़ने का  मेरे मासूम दिल को क्यूँ इतना रुलाते हो  मेरी सुबह तुम्हारे नाम से शुरू  होती है मेरी रात तेरे नामे से बिस्तर में गुज़रती है  मौत दे दो अगर साथ नहीं दे सकते मेरा दूर रह कर क्यूँ हर वक़्त मेरा दिल जलाते हो 
kitne zakhm dikhayen, kitne chupkar rakhen dard ki intehaa itni ke aah nikal hi jaati hai roz subah unke naam se aankh kholte hein har roz raat ko unki yaad behad sataati hai...
जब धूप तेज़ होती है तो अपनी परछाई ही पाँव बचाती है रात के स्याह अंधेरों में अपनी नींद ही आगोश में बुलाती है दिल की धड़कने जब बढती हैं दर्द में, परेशानियों में अपनी ही हथेली, मासूम दिल को प्यार से सहलाती है अपनी जिंदगी की लड़ाई इंसान अक्सर खुद लड़ता है बेवजह वक़्त ए गर्दिश में गैरों का दामन पकड़ता है ये तो तकदीर की कहानियाँ हैं जो लकीरों में छुपी हैं और खुद तकदीर ही वक़्त बे वक़्त ये हिकायतें सुनाती है हार मानोगे तो सिर्फ हार का ही सामना होगा जीत क्यूंकि सिर्फ इरादों में बसा करती है खुद को तूफ़ान समझो और जिंदगी को एक चट्टान के तूफानी हवा अक्सर अपना रास्ता खुदा बनाती है....
रूठा उनसे जाता है जो मना ले, कभी प्यार से कभी डांट कर वापस बुला ले जिस से रिश्ता निभाना इक बोझ लगे, अच्छा है वक़्त रहते उससे पीछा छुड़ा ले मेरी जिंदगी कोई रुका हुआ तालाब नहीं मेरी जिंदगी एक उफनती नदी है जिसको समंदर भी खोजेगा एक दिन ताकि मेरी हस्ती में खुद को समा ले रास्तों में मिल ही जाते हैं मुसाफिर अजनबी कोई आशना बन जाता है कोई अघ्यार मुझे उस रहबर की तलाश है आज तक जो मेरी मंजिल को अपना समझ अपना ले....