कभी कभी मेरे लफ्ज़ लोगों को चुभ जाते हैं
किसी को अपने दिए दर्द का अहसास कराते हैं
बोलते नहीं सिर्फ सफ़ेद कागज़ पर बिछ कर
स्याही की कालिख में मेरी रातों का रंग छुपाते हैं.
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...