बहुत रात बीतने की बाद भी हर रोज़
किसी के क़दमों की आह्ट सुना देती है
नींद आ आ कर अटक जाती है आँखों में
और पलकें उसके ख़्वाबों पर गिरा देती है
हर गोश ज़हन का उसका तस्सव्वुर करता है
हर पोर नयनों का उसके अश्कों को भरता है
आगोश में जिस्म होता नहीं मगर फिर भी
बाज़ुएँ उसके पहलु में पकड़ कर लिटा देती है...

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