देने को तो लोग खुदाई लुटा देते हैं
एक लम्हा मसर्रत को जान गवां देते हैं
फिर हमने कौन सा उनका जहाँ माँगा था
बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था ...

वो बज़्म-ओ - महफ़िलें सजाते हैं
दुनिया भर के आशिकों को बुलाते हैं
फिर हमने कौन सा उनका आशियाँ माँगा था
बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था ....

वो खुद खुलेआम ख़त भिजवाते हैं
उसपर ज़माने भर से ताकीदें करवाते हैं
फिर हमने कौन सा उनका बयान माँगा था
बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था ....

कसमें खाते हैं और वादे भूल जाते हैं
दैरो-हरम के किस्से अक्सर सुनाते हैं
फिर हमने कौन सा उनका ईमान माँगा था
बस एक टुकड़ा आसमां माँगा था....

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