कोई ख्वाइश नहीं, अब कोई शिकायत भी नहीं
हम उनसे अब वो जुनूनी मोहब्बत भी नहीं
मेरा हर ख़याल उसके ख्याल से गुज़रता था कभी
मेरे ज़हन में जिसकी अब अहमियत भी नहीं
चुरा कर नीदें ख्वाब देखा करते थे रात भर
मेरी आँखों को उन सपनों की अब आदत भी नहीं
हदों के पार जाना मेरी फितरत थी कभी शायद
मेरी तम्मनाओं में अब उसकी हसरत भी नहीं
खुदा कहने से कोई खुदा बन नहीं जाता यहाँ
के मेरे दिल में उसके लिए अब इबादत भी नहीं
ए काश वो मेरे इन लफ़्ज़ों को समझ ले गौर से
मुझे उसकी आरजू नहीं, मुझे उसकी ज़रुरत भी नहीं...

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