इतनी मुशक्कत के चाँद पर नक़्शे कदम छोड़ सकता है
गर चाहे तो मेहनत से तकदीर का मुहं मोड़ सकता है
कौन कहता है आसमान की हदों के पार जाना मुमकिन नहीं
इंसान कोशिशों से आसमान को भी चद्दर सा ओड़ सकता है
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...