कभी अपनी बाजुओं में मेरी कमी खली है?
कभी मेरी चाहत तेरे दिल में पली है?
कभी ऐसा लगा के सर मेरा तेरे काँधे पर हो,
कभी ख्वाइश तेरी मेरे जिस्म में ढली है?
कभी चुपके से यादों ने घेरा है,
कभी लगा मुझपे हक सिर्फ तेरा है,
 कभी रातों को जागते हुए सोचा है,
तेरे प्यार की आग में कोई जली है?
कभी तन्हाई में आंसू बहे हैं,
कभी मेरे ख्याल तेरे ख्यालों  में रहे हैं,
कभी हाथ बड़ाया है नींद में मुझे आगोश में लेने को,
और सांस तेरी तेज़ तेज़ चली है?
कभी महफ़िल में दिल उदास हुआ है
कभी लगा शायद मैंने तुम्हें छुआ है
कभी रास्तों पर चलते चलते भटक कर 
तुम वहां पहुंचे हो जहाँ मेरी गली है??? 

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार