जिंदगी में मुहब्बत को हमेशा
दो पैमानों में नापा जाता है
एक जब आलम बेखुदी का होता है
एक जब बेखुदी के बाद होश आता है
जिंदगी बे-जुबां नहीं मगर
मुहब्बत में बयानी की क्या बातें
एक जब जुबां खामोश होती है
एक जब अहसास लफ़्ज़ों में समाता है
जीने के लिए वक़्त नहीं मगर
नामुराद मुहब्बत के आलम में
कभी दिल सिर्फ यार को ढूंढता है
कभी हर घड़ी उसका ख़याल आता है...

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार