हर रोज़ एक नयी तलाश

यहाँ हर रोज़ एक नयी तलाश शुरू होती है,
हर रोज़ एक नए सूरज की राह ताकी जाती है;
सलीबों पे लटके बेशुमार मुर्दों में हर शाम,
नोटों की गर्मी से जिंदगी फांकी जाती है;
न कोई अपना है यहाँ पे न बेगाना इधर,
हर शख्स की औकात सूरत से आंकी जाती है;
इस भीड़ में गुमनामी भी एक ताज है के,
आशनाई हो तो आदमी की रूह तक झांकी जाती है..

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