क्या फिर दो कदम मेरे साथ चलोगे

क्या फिर दो कदम मेरे साथ चलोगे?
क्या हिम्मत है ज़माने से लड़ने की,
इन रवायतों में अपनी बात पे अदने की,
क्या फिर दुनिया से एक नई जंग शुरू करोगे?
कुछ बातें कही हुई थी दिलों ने आपस में,
कुछ जज़्बात किये थे बामुश्किल बस में;
अब चुराए हैं कुछ लम्हे वक़्त से,
क्या फिर उन बातों पे दोबारा अमल करोगे?
कभी दांतों तले होंठ काटने पे टोका था,
रोने को थे तो आगे बढ कर रोका था;
अब आँखें छलछलाती हैं तन्हाई में,
क्या फिर मेरे आंसुओं को अपने दामन में भरोगे?
एक एक कदम चलते चलते दूर हो गए,
आशनाई से अजनबी बनने को मजबूर हो गए;
तेरे हाथों की हरारत को बेचैन हेई रूह मेरी,
क्या फिर अपने आगोश में मुझको भरोगे?
रकीबों से तेरी करीबियां हद-ए-गुस्ताखी हैं,
मेरे हबीब मेरे लिए तेरी रानाइयां नाकाफी हैं;
आज दोराहे पे जिंदगी तुम्हें ले आई है,
क्या तुम मेरी जानिब दो कदम चलोगे??

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