मयस्सर
इजतिराब का गुमा है या दिल वाकई बर्गश्ता है,
के मेरा मुहाफिज़ कम्बखत एक ज़हर निकला;
फरेब दिल को हुआ या शुबा फरेब का था,
एक मोहसिन था, जाहिद था,
अब बेखबर निकला;
कोसना मेरी फितरत नहीं.
दुआ उसको भायी नहीं,
मेरा हर लफ्ज़ हाय कितना बेअसर निकला;
फासलों से दिखाई दिया बहुत पराया था,
नजदीकियों से वो कितना मयस्सर निकला..
के मेरा मुहाफिज़ कम्बखत एक ज़हर निकला;
फरेब दिल को हुआ या शुबा फरेब का था,
एक मोहसिन था, जाहिद था,
अब बेखबर निकला;
कोसना मेरी फितरत नहीं.
दुआ उसको भायी नहीं,
मेरा हर लफ्ज़ हाय कितना बेअसर निकला;
फासलों से दिखाई दिया बहुत पराया था,
नजदीकियों से वो कितना मयस्सर निकला..